केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि भारत ‘इस्पात’ सड़कों के युग में प्रवेश कर चुका है
डॉ. सिंह ने टाटा स्टील जमशेदपुर से सीमा सड़क संगठन परियोजना अरुणांक, ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश तक स्टील अपशिष्ट (स्लैग) एग्रीगेट्स रेलवे रैक को वर्चुअल माध्यम से झंडी दिखाकर रवाना किया
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद – केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर- सीआरआरआई) ने इस्पात मंत्रालय की प्रायोजित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत इस तकनीक को विकसित किया है
डॉ. जितेंद्र सिंह के अनुसार स्टील स्लैग रोड की निर्माण लागत पारंपरिक सड़क की तुलना में 30% कम है और इसकी क्षमता 3 से 4 गुना अधिक है
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री एवं पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री, डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि भारत सीमेंट (कंक्रीट) से अपशिष्ट इस्पात (स्टील स्लैग) की ओर बढ़ते हुए ‘इस्पात निर्मित’ सड़कों के युग में प्रवेश कर गया है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद – केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर- सीआरआरआई), टाटा स्टील और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा विश्व में संसाधित स्टील स्लैग एग्रीगेट्स की इस तरह की गई पहल का उपयोग सामरिक क्षेत्रों में स्टील स्लैग रोड के निर्माण में किया जा रहा है।
डॉ. जितेंद सिंह टाटा स्टील जमशेदपुर से सीमा सड़क संगठन परियोजना अरुणांक, ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश तक 1600 मीट्रिक टन प्रसंस्कृत स्टील स्लैग एग्रीगेट्स रेलवे रैक के प्रेषण को झंडी दिखाने के बाद सम्बोधित कर रहे थे।
यह सीएसआईआर-सीआरआरआई, टाटा स्टील और सीमा सड़क संगठन द्वारा विश्व में अपनी तरह की पहली ऐसी पहल है, जिसमें सामरिक क्षेत्रों में स्टील स्लैग रोड के निर्माण में संसाधित स्टील स्लैग एग्रीगेट का उपयोग किया जा रहा है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस अवसर पर कहा कि भारत की दूसरी सबसे बड़ी और सबसे पुरानी स्टील कंपनी टाटा स्टील, सीमा सड़क संगठन की मांग को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद-केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर- सीआरआरआई ) के साथ सहयोगात्मक अनुसंधान एवं विकास गठबंधन के अंतर्गत आगे आई है, जो यहां विकसित सीआरआरआई तकनीकी मार्गदर्शन के तहत टाटा स्टील जमशेदपुर संयंत्र संसाधित बीओएफ स्टील स्लैग एग्रीगेट्स की आपूर्ति के लिए है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि “अपशिष्ट से सम्पदा” और नीति आयोग के निर्देशों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना के अनुसार, सीएसआईआर – सीआरआरआई ने इस्पात मंत्रालय की प्रायोजित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत इस तकनीक को विकसित किया है। उन्होंने कहा कि देश में सीएसआईआर की 37 में से एक तिहाई प्रयोगशालाएँ “अपशिष्ट से सम्पदा” (वेस्ट टू वेल्थ) बनाने के लिए उपयुक्त तकनीक विकसित करने के लिए काम कर रही हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आज का कार्यक्रम “जीवन की सुगमता” के लिए विज्ञान के अनुप्रयोग का एक और प्रदर्शन है और यह एकीकरण और संपूर्ण सरकारी अवधारणा को भी रेखांकित करता है, क्योंकि 4 प्रमुख संस्थाएं टाटा स्टील, सीएसआईआर, सीमा सड़क संगठन और इस्पात मंत्रालय “अपशिष्ट से सम्पदा” की अवधारणा को एक नए स्तर पर ले जाने के लिए एक साथ आगे आए थे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कहा कि यह उल्लेखनीय है कि इस सड़क की निर्माण लागत प्राकृतिक समुच्चय से निर्मित पारंपरिक सड़क की तुलना में 30% कम है, जबकि इसकी क्षमता 3 से 4 गुना अधिक है। भारत में एक विशाल सड़क नेटवर्क है और राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, भारतमाला परियोजना के अंतर्गत बड़े पैमाने पर सड़क निर्माण हो रहा है। मंत्री महोदय ने आशा व्यक्त की कि इस तकनीक की सफलता से न केवल सड़क निर्माण के लिए प्राकृतिक समुच्चय की उपलब्धता की समस्या का समाधान होगा, बल्कि भूमि संसाधनों के वर्तमान उत्खननों को रोकने में भी मदद मिलेगी।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, स्टील स्लैग रोड की सफलता की कहानी और स्थायित्व के मोर्चे पर इसकी नवीन तकनीकी विशेषताओं के माध्यम से जानकारी मिलने के बाद सीमा सड़क संगठन ने अरुणाचल प्रदेश में स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी को लागू करने के लिए सीएसआईआर- सीआरआरआई से संपर्क किया, क्योंकि संगठन वहां अच्छी गुणवत्ता वाले टिकाऊ हर मौसम में सड़क बनाने के लिए प्राकृतिक समुच्चय अवयवों की भारी कमी का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा आगे कहा कि स्टील स्लैग को सड़क बनाने वाले समुच्चय में बदलने से न केवल इस्पात उद्योगों के लिए स्टील स्लैग अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या कम होगी, बल्कि सड़क निर्माण के लिए प्राकृतिक समुच्चय का एक लंबे समय तक चलने वाला टिकाऊ और व्यवहार्य विकल्प भी उपलब्ध होगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, भारत वर्तमान में कच्चे स्टील का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो 11 करोड़ 80 लाख एमटी से अधिक कच्चे स्टील का उत्पादन करता है और जिसमें से लगभग 20 प्रतिशत स्टील स्लैग ठोस अपशिष्ट के रूप में उत्पन्न होता है और इसका निपटान इस्पात उद्योगों के लिए एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि इस चुनौती का समाधान करने के लिए सीएसआईआर-सीआरआरआई तकनीकी नवाचार के साथ आगे आया और उसने सूरत, गुजरात में भारत की पहली स्टील स्लैग सडक बनाने का मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा, आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील प्लांट हजीरा में सीएसआईआर-सीआरआरआई तकनीकी मार्गदर्शन के अंतर्गत लगभग 1 लाख टन संसाधित स्टील स्लैग एग्रीगेट विकसित किए गए हैं और जो सड़क निर्माण में प्राकृतिक समुच्चय के विकल्प के रूप में सफलतापूर्वक उपयोग किए गए हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने लैवेंडर की खेती के लिए जम्मू-कश्मीर में बैंगनी क्रांति, जल शक्ति मंत्रालय के लिए जल मूल्यांकन के लिए हेलीबोर्न प्रौद्योगिकी, कृषि अनुप्रयोगों में उपयोग के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (आईसीएमआर) के लिए दवाओं और सीएसआईआर-भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून द्वारा पके हुए तेल के उपयोग से वैकल्पिक ईंधन तैयार करने जैसे अद्वितीय नवाचारों के लिए सीएसआईआर की सराहना की।