श्रीलंका में मंगलवार को भंग किया जा सकता है संसद को, समय से पहले होंगे संसदीय चुनाव
श्रीलंका में आज (मंगलवार) रात संसद को भंग किया जा सकता है। माना जा रहा है नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके संसद भंग करने के साथ दिसंबर तक संसदीय चुनाव कराने की घोषणा कर सकते हैं। अनुरा कुमारा दिसानायके ने सोमवार को श्रीलंका के नए राष्ट्रपति की शपथ ले ली है।
कैबिनेट में 15 विभागों का बंटवारा किया जाएगा
श्रीलंका के प्रमुख समाचार पत्र ‘डेली मिरर’ की खबर में इस पर विस्तार से चर्चा की गई है। खबर में कहा गया है कल प्रधानमंत्री पद से दिनेश गुणवर्धन के इस्तीफे के बाद दिसानायके की पार्टी नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) के भरोसेमंद सूत्र ने कहा कि राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके आज अंतरिम कैबिनेट का गठन करेंगे। इसमें वह खुद और चार मंत्री होंगे। कैबिनेट में 15 विभागों का बंटवारा किया जाएगा।
एनपीपी सांसद डॉ. हरिनी अमरसूर्या को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई जाएगी
राष्ट्रपति दिसानायके पर्यटन, रक्षा, वित्त, न्याय, उद्योग और निवेश संवर्धन विभागों को अपने पास रखेंगे। प्रधानमंत्री विदेश मामलों, शिक्षा और मास मीडिया के अलावा अन्य विभागों के मंत्री भी बनेंगे। एनपीपी सांसद डॉ. हरिनी अमरसूर्या को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई जाएगी, जबकि वरिष्ठ सांसद विजिता हेराथ और सांसद लक्ष्मण निपुण अराच्ची को कई विभागों के साथ मंत्री नियुक्त किया जाएगा। निपुण अराच्ची ने कल कोलंबो निर्वाचन क्षेत्र के सांसद के रूप में शपथ ली। यह सीट दिसानायके के राष्ट्रपति बनने से रिक्त हुई थी।
दिसानायके ने सोमवार सुबह राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली
राष्ट्रपति संसद को भंग करने के बाद संसदीय चुनाव की घोषणा करते हुए नामांकन की तिथि तय करेंगे। इस तिथि के बाद निर्वाचन आयोग नामांकन के लिए 10 से 17 दिनों का समय देगा। राष्ट्रपति दिसानायके संसदीय चुनाव के बाद नई संसद के गठन की तिथि की भी घोषणा कर सकते हैं। दिसानायके ने सोमवार सुबह राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। इसके तुरंत बाद उन्होंने तीनों सेनाओं के कमांडरों और फिर अपने वरिष्ठ पार्टी सदस्यों से मुलाकात की। इसके बाद वह आशीर्वाद लेने के लिए अपनी वृद्ध मां से मिलने तंबुत्तेगामा गए।
उल्लेखनीय है कि श्रीलंका में 225 संसदीय सीटें हैं और इसके लिए पिछला चुनाव अगस्त 2020 में हुआ था। इसी साल देश में आर्थिक संकट आने के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। जिसके परिणामस्वरूप गोटबाया राजपक्षे को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। उसके बाद यह पहला राष्ट्रपति चुनाव था।