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Chhath: अस्ताचलगामी सूर्य को आज दिया जाएगा अर्घ्य, जानें ढलते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व

Chhath: अस्ताचलगामी सूर्य को आज दिया जाएगा अर्घ्य, जानें ढलते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
  • PublishedNovember 7, 2024

छठ पर्व के आज तीसरे दिन, शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे, इसे संध्या अर्घ्य भी कहते हैं। उगते सूर्य को अर्घ्य देने की रीति तो कई व्रत और त्योहारों में है, लेकिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा केवल छठ में ही है। अर्घ्य देने से पहले बांस की टोकरी को फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू और पूजा के सामान से सजाया जाता है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा होती है फिर डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की जाती है।

क्यों दिया जाता है डूबते सूर्य को अर्घ्य?

सूर्य की उपासना सभ्यता के अनेक क्रमों में देखी जा सकती है। महापर्व छठ हिंदू धर्म में एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें न केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है।
पौराणिक काल से ही सूर्य को आरोग्य के देवता माना गया है वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य की किरणों में कई रोगों को समाप्त करने की क्षमता पाई गई है। सूर्य की वंदना का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है तथा अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी महत्ता व्यक्त की गई है।

पौराणिक व वैज्ञानिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है। कहा जाता है कि इससे व्रत रखने वाली महिलाओं को दोहरा लाभ मिलता है। जो लोग डूबते सूर्य की उपासना करते हैं, उन्हें उगते सूर्य की भी उपासना जरूर करनी चाहिए। रामायण काल में सीता ने गंगा तट पर छठ पूजा की थी। महाभारत काल में कुंती ने भी सरस्वती नदी के तट पर सूर्य पूजा की थी। इसके परिणाम स्वरूप उन्हें पांडवों जैसे पुत्रों का सुख मिला था। द्रौपदी ने भी हस्तिनापुर से निकल कर गढ़ गंगा में छठ पूजा की थी। छठ पूजा का सम्बंध हठयोग से भी है। जिसमें बिना भोजन ग्रहण किए हुए लगातार पानी में खड़ा रहना पड़ता है। जिससे शरीर के अशुद्ध जीवाणु परास्त हो जाते हैं।

वैज्ञानिक महत्व
सूर्य देव की उपासना ही छठ पर्व से जुड़ा है और वैज्ञानिक महत्व भी है। कहा जाता है कि अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है। ज्योतिषियों का कहना है कि ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा इससे सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के मुताबिक ढलते सूर्य को अर्घ्य देने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

दुनियाभर में बढ़ी छठ की महत्ता

सूर्य षष्ठी के महत्व को देखते हुए इस पर्व को सूर्य छठ या डाला छठ के नाम से संबोधित किया जाता है। इस पर्व को बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल की तराई समेत देश के उन तमाम महानगरों में मनाया जाता है जहां-जहां इन प्रांतों के लोग निवास करते हैं। यही नहीं, मॉरिशस, त्रिनिडाड, सुमात्रा, जावा समेत विदेशों में भी भारतीय मूल के प्रवासी छठ पर्व को बड़ी आस्था और धूमधाम से मनाते हैं। डूबते सूर्य की विशेष पूजा ही छठ का पर्व है। चढ़ते सूरज को सभी प्रणाम करते हैं।