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अरुणाचल पर चीनी दावे का अमेरिका ने किया जोरदार विरोध

अरुणाचल पर चीनी दावे का अमेरिका ने किया जोरदार विरोध
  • PublishedMarch 21, 2024

अमेरिका ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा माना। इस संबंध में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रधान उप-प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा है कि अमेरिका अरुणाचल प्रदेश को भारतीय क्षेत्र के रूप में मान्यता देता है। उन्होंने यह भी कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार सैन्य या फिर नागरिक घुसपैठ से अतिक्रमण करने के प्रयास का वे दृढ़ता से विरोध करते हैं।

कब आया अमेरिका का यह बयान ?

ज्ञात हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में अरुणाचल प्रदेश का दौरा करने और विकास परियोजनाएं शुरू करने के बाद चीनी सेना द्वारा पूर्वोत्तर राज्य पर अपना दावा दोहराए जाने के कुछ दिनों बाद अमेरिका के अधिकारी का यह बयान आया है।

बीते 9 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था। उस दौरान उन्होंने कई परियोजनाएं शुरू करने के साथ-साथ सेला सुरंग का भी उद्घाटन किया था जो 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बनाई गई है।

यह दुनिया की सबसे लंबी दोहरी लेन वाली सुरंग है। कुल 825 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित यह सुरंग बालीपारा – चारिद्वार – तवांग रोड पर सेला दर्रे के पार तवांग को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगी, साथ ही सशस्त्र बलों की तैयारियों को मजबूती देगी और सीमा क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ाएगी।

अमेरिका पहले भी करता रहा है अरुणाचल प्रदेश पर भारत के अधिकार का अनुमोदन

बताना चाहेंगे कि यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने अरुणाचल प्रदेश पर भारत के अधिकार का अनुमोदन किया है। पिछले साल जून में जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे, तब उसके कुछ ही हफ्ते बाद अमेरिकी कांग्रेस की एक समिति ने इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें अरुणाचल प्रदेश को “भारत का अभिन्न अंग” बताया गया था।

अरुणाचल प्रदेश को बताया “भारत का अभिन्न अंग”

ज्ञात हो, जुलाई 2023 में यह प्रस्ताव सेनेटर जेफ मर्कली, बिल हैगर्टी, टिम केन और क्रिस वान होलेन ने पेश किया था। अमेरिकी सीनेट की शक्तिशाली समिति ‘कांग्रेशनल एग्जीक्यूटिव कमीशन ऑन चाइना’ के उपाध्यक्ष तब सेनेटर मर्कली ने कहा, ‘दुनियाभर में हमारे संबंधों और गतिविधियों का केंद्र अमेरिका की नियमबद्ध शासन और स्वतंत्रता के मूल्यों पर आधारित नीतियां होनी चाहिए, खासतौर पर तब जबकि चीन एक वैकल्पिक विचार थोपने की कोशिश करे।’