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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : अपनी भाषा के बिना संभव नहीं विकास

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : अपनी भाषा के बिना संभव नहीं विकास
  • PublishedFebruary 21, 2024

विश्व में भाषाई व सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए और मातृभाषा के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से हर वर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। आज आधी भाषाएं खतरे में हैं। कारण है कि आज हमारे बच्चे,हमारी युवा पीढ़ी अपनी मूल भाषा से काफी दूर हो गयी है। हम सिर्फ बच्चों को अंग्रेंजी सिखाने की होड़ में उनको मातृभाषा से दूर करते जा रहे हैं। कोई व्यक्ति यदि भाषा के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति देता है तो वह अपनी पहचान,अपनी संस्कृति,अपने परिवेश,अपने ज्ञान,अपनी आत्मा,अपने इतिहास,अपनी परंपराओं के बारे में हमें रूबरू करवाता है।

भाषा सिर्फ संवाद का स्वाभाविक माध्यम ही नहीं है, बल्कि किसी भी व्यक्ति या समुदाय की सांस्कृतिक पहचान भी होती है। यह हम सब जानते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अंग्रेजी भाषा के अच्छे जानकार थे। उन्होंने विदेश में पढ़ाई की थी,लेकिन वह अपनी भाषा, मातृभाषा के समर्थक थे। वह मानते थे कि कोई भी बात अपनी भाषा में जितने अच्छे तरीके से कही जा सकती है,उतने अच्छे से दूसरी भाषा में नहीं।अब आप सोच रहें होंगे की अचानक बापू की यह बात मुझे क्यों याद आ रही है,वह इसलिए क्योंकि आज जहां एक तरफ पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रही है वहीं हम सब खुद अपनी संस्कृति,अपनी भाषा से दूर होते जा रहे हैं।

विश्व में भाषाई व सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए और मातृभाषा के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से हर वर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।आज आधी भाषाएं खतरे में हैं। कारण है कि आज हमारे बच्चे,हमारी युवा पीढ़ी अपनी मूल भाषा से काफी दूर हो गयी है। हम सिर्फ बच्चों को अंग्रेजी सिखाने की होड़ में उनको मातृभाषा से दूर करते जा रहे हैं। कोई व्यक्ति यदि भाषा के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति देता है तो वह अपनी पहचान, अपनी संस्कृति,अपने परिवेश, अपने ज्ञान,अपनी आत्मा,अपने इतिहास,अपनी परंपराओं के बारे में हमें रूबरू करवाता है।

हमारे देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जो खुद ओडिशा के एक आदिवासी गांव से ताल्लुक रखती हैं। वह भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने पर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करती हैं। उनका मानना है कि अगर विज्ञान, साहित्य और सामाजिक विज्ञान की पढ़ाई भी मातृ भाषा में कराई जाए तो इन क्षेत्रों में प्रतिभाएं और निखर कर सामने आएंगी। वे अपने स्कूली शिक्षकों के योगदान को हमेशा याद करती है जिनकी वजह से राष्ट्रपति कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली लड़की बनी थीं। उनका मानना है भारत की स्कूली शिक्षा दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में से एक होती है इसलिए अगर बच्चों को आगे बढ़ना है तो एक विषय मातृभाषा पर केंद्रित जरूर होना चाहिए।

इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से जब एक साक्षात्कार में पूछा गया था कि आप इतने महान वैज्ञानिक कैसे बन गए इसमें सबसे बड़ा योगदान किसका मानते है तो उन्होंने उत्तर दिया था कि” मेरी पढ़ाई मातृभाषा में हुई है इसलिए मैं इतना ऊँचा वैज्ञानिक बन सका हूँ “, उसके उपरांत उन्होंने थोड़ी बहुत अंग्रेजी सीख स्वयं को उसमें भी दक्ष बना लिया किंतु मूल भाषा उनकी पढ़ाई की तमिल रही। इसके अलावा हमारे देश में कई ऐसे विद्वान हुए हैं जिनका मानना था कि विज्ञान की पढ़ाई मातृभाषा में ही होनी चाहिए ताकि सभी लोग इसमें भाग ले सकें। महान भौतिकविदों में से एक सी.वी. रमन भी इनमें से एक थे।

आज जनजातीय भाषाओं का संवर्द्धन व संरक्षण भी बेहद जरूरी है। भाषाओं का अस्तित्व व प्रसार तभी संभव है जब हम जनजातीय भाषाओं, हमारे आसपास की विभिन्न भाषाओं, देशज भाषाओं का संवर्धन और संरक्षण करेंगे। हमें सदैव इस बात चिंतन जरूर करना चाहिए कि हम अपनी भाषा को कैसे आगे बढ़ाएं, उसे कैसे आगे ले जाएं, उसे कैसे समृद्ध करें, इस दिशा में हमें पहल करने की जरूरत है और सबसे पहले शुरूआत अपने आप से करनी होगी। अंग्रेजी के साथ साथ सभी स्कूलों के अलावा घर में भी मातृभाषा पर ध्यान देना होगा। आज के युग में भाषाओं की विलुप्ति का कारण कहीं न कहीं वैश्वीकरण भी है। वैश्वीकरण के इस दौर में पूरी दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति कुछ बेहतर पाने की कोशिश में लगा हुआ है और शायद यही कारण है कि वह बहुत सी अहम चीजों को आज लगातार विस्मृत करता चला जा रहा है। भाषा भी उन अहम चीजो में से एक है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई भाषा मर जाती है, तो आसपास की ज्ञान प्रणाली भी मर जाती है और विलुप्त हो जाती है। आज के समय में,अंग्रेजी और अन्य प्रमुख भाषाएं ज्ञान और रोजगार की भाषा के साथ-साथ इंटरनेट की प्राथमिक भाषा बन गई हैं। डिजिटल क्षेत्र की प्रमुख सामग्री अब अधिकतर अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध है, और इसलिए, अन्य भाषाओं को हाशिए पर डाल दिया गया है।

नई दिल्ली स्थित आकाशवाणी भवन में एक दीवार पर पट्टिका लगी हुई है जिस पर लिखा है –बच्चों का भाग्य सदैव उसकी मां द्वारा निर्मित होता है। यह कथन महान सम्राट नैपोलियन ने लिखा था,अब जरूरत इसको अपने जीवन में उतारने की है। बच्चों की मातृभाषा में दिलचस्पी तभी पैदा हो सकती है जब खुद मां उनसे अपनी भाषा में बातचीत करें और उन्हें अंग्रेजी सीखने के साथ साथ अपनी मातृभाषा सीखने के लिए भी प्रोत्साहित करें। इसके अलावा स्कूलों में भी नियमित रूप से मातृभाषा पर एक कार्यशाला का आयोजन समय समय पर होना चाहिए। रेडियो इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। टीवी और मोबाइल से अधिकतर बच्चे सोशल मीडिया पर रील्स बनाने और देखने में लगे रहते हैं जिससे उनका दिमाग गलत दिशा में जा रहा है। ऐसे में उन्हें मोबाइल की जगह रेडियो हाथ में दें।

आज आकाशवाणी में अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में बुलेटिन प्रसारित किये जाते हैं, अनेक कार्यक्रम ऐसे होते हैं जिससे आप मातृभाषा की और अग्रसर हो सकते हैं। बाल कार्यक्रम भी मनोरंजन का केन्द्र बनते हैं। आकाशवाणी का समाचार सेवा प्रभाग घरेलू, क्षेत्रीय, बाहरी और डीटीएच सेवाओं में लगभग 90 भाषाओं/बोलियों में लगभग 56 घंटे की कुल अवधि के लिए प्रतिदिन 647 बुलेटिन प्रसारित करता है। 41 आकाशवाणी केंद्रों से प्रति घंटे के आधार पर 314 समाचार सुर्खियाँ एफएम मोड पर भी प्रसारित की जा रही हैं। 44 क्षेत्रीय समाचार इकाइयां 75 भाषाओं में 469 दैनिक समाचार बुलेटिन निकालती हैं। दैनिक समाचार बुलेटिनों के अलावा, समाचार सेवा प्रभाग दिल्ली और इसकी क्षेत्रीय समाचार इकाइयों से सामयिक विषयों पर कई समाचार-आधारित कार्यक्रम भी चलाता है।

ऐसे में बस जरूरत है तो जागरूकता लाने की और समय-समय पर बच्चों को रेडियो में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम के बारे में जानकारी देने की। इसमें अभिभावक और शिक्षक मिलकर बच्चों के अंदर मातृभाषा को फिर से नया रूप देने का कार्य कर सकते हैं। शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों को एक बार आकाशवाणी केन्द्र जरूर लेकर आएं ताकि वे रेडियो के महत्व को समझते हुए अपनी संस्कृति,अपनी भाषा,अपनी पहचान को और करीब से जान सकें। उन्हें एक समाचार बुलेटिन सुनने के लिए प्रोत्साहित जरूर करें। क्यों न आज से ही हम सजग हो जाएं और मातृभाषा को अपने अंदर समाहित कर अपने साथ साथ देश का भी गौरव बढ़ाएं।