सीएसआईआर-सीएमईआरआई ने कॉम्पैक्ट इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर- सीएसआईआर प्राइमा ईटी11 विकसित किया
भारत में कृषि लगभग 55 प्रतिशत जनसंख्या के लिए आजीविका का प्राथमिक स्रोत है, जो 1.3 अरब लोगों को भोजन प्रदान करती है और देश की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान देती है। मशीनीकरण द्वारा कृषि उत्पादकता बढ़ाने में ट्रैक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय ट्रैक्टर उद्योग ने पिछले कुछ दशकों में उत्पादन क्षमता और प्रौद्योगिकी के मामले में एक लंबा सफर तय किया है।
सीएसआईआर सीएमईआरआई का विभिन्न रेंजों और क्षमताओं के ट्रैक्टरों के डिजाइन और विकास में लंबा इतिहास रहा है। इसकी यात्रा 1965 में पहले स्वदेशी रूप से विकसित स्वराज ट्रैक्टर से शुरू होती है, उसके बाद 2000 में 35 एचपी सोनालिका ट्रैक्टर और फिर 2009 में छोटे और सीमांत किसानों की मांग के लिए 12 एचपी कृषिशक्ति के छोटे डीजल ट्रैक्टर बनाया गया। विरासत को अगले स्तर पर ले जाने के लिए सीएमईआरआई ने ट्रैक्टर में उन्नत तकनीक के साथ काम करना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप यह ई-ट्रैक्टर विकसित किया गया है।
परंपरागत रूप से ट्रैक्टर डीजल का उपयोग करते हैं और इस प्रकार, पर्यावरण प्रदूषण में बड़ा योगदान देते हैं। एक अनुमान के अनुसार वे हमारे देश के वार्षिक डीजल उपयोग का लगभग 7.4 प्रतिशत और कुल कृषि ईंधन उपयोग का 60 प्रतिशत उपभोग करते हैं। साथ ही उनका पीएम2.5 और एनओएक्स उत्सर्जन अगले दो दशकों में मौजूदा स्तर से 4-5 गुना बढ़ने की संभावना है।
वैश्विक कार्बन फुट प्रिंट कटौती रणनीति के लिए इस क्षेत्र में विद्युतीकरण की दिशा में तेजी से बदलाव की आवश्यकता है। वर्ष 2021 में ग्लासगो में आयोजित सीओपी26 शिखर सम्मेलन में, भारत ने वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक अरब टन कम करने की दिशा में काम करने की घोषणा की। साथ ही वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया। इसलिए, विद्युतीकरण ट्रैक्टर एक आवश्यक कदम है जो हमारे देश को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को और कम करने की आवश्यकता और जल्द ही जीवाश्म ईंधन की दुर्लभ उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए, अधिक दीर्घकालीन कृषि के संदर्भ में इलेक्ट्रिक ट्रैक्टरों की एक संभावित समाधान के रूप में पहचान की गई है। हालाँकि, अधिकांश वाणिज्यिक उपकरणों में उच्च-शक्ति वाली मशीनें शामिल होती हैं, जो केवल बड़े क्षेत्र में कृषि के लिए ही संभव हैं और यह भारतीय सीमांत किसानों के लिए एक चुनौती है, जिनके पास लगभग 2 हेक्टेयर या उससे कम कृषि भूमि है और इस छोटे और सीमांत किसान में किसान समुदाय का 80प्रतिशत से अधिक शामिल है।