चंद्रयान-3 जुलाई में लॉन्च करेगा भारत, अंतिम चरण में है तैयारी
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केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने एक समारोह के दौरान जानकारी दी कि भारत का प्रतिष्ठित मिशन चंद्रयान-3 जुलाई 2023 में लॉन्च होगा। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष यान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने के लिए महत्वपूर्ण तकनीक का प्रदर्शन करना है।
भारत का प्रतिष्ठित मिशन चंद्रयान-3 जुलाई 2023 में लॉन्च होगा। यह मिशन अगले महीने की दूसरी छमाही में लॉन्च होने की संभावना है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने एक समारोह के दौरान मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए यह खुलासा किया है।
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा चंद्रयान-3
इस संबंध में उन्होंने कहा, अगर चीजें योजनानुसार चलती रहीं, तो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अपने महत्वाकांक्षी चंद्रयान-3 मिशन को लॉन्च करेगा, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष यान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने के लिए महत्वपूर्ण तकनीक का प्रदर्शन करना है।
इससे पहले उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 ने सभी आवश्यक परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा किया, जिसने कठोर वातावरण का सामना करने की अपनी क्षमता को मान्य किया, जो कि अंतरिक्ष यान को अपने प्रक्षेपण और बाद की यात्रा के दौरान सामना करनी पड़ेगी।
चंद्रयान-1 से विश्व पटल पर गौरव हासिल कर चुका भारत
आगे जोड़ते हुए उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पहले के मिशन, चंद्रयान-1 ने पहली बार चंद्रमा की सतह पर पानी की उपस्थिति की पहचान करके देश को विश्व पटल पर गौरव और वर्चस्व का स्थान दिलाया था। उन्होंने कहा कि इस इनपुट को संयुक्त राज्य अमेरिका की नासा जैसी दुनिया की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा भी बहुत महत्व दिया गया था।
चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 का फॉलोअप मिशन
उल्लेखनीय है कि चंद्रयान-3 मिशन, चंद्रयान-2 का ही फॉलोअप मिशन है। दरअसल, भारत ने इससे पहले वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 के जरिए यह कोशिश की थी, लेकिन तब चंद्रयान का लैंडर विक्रम लैंडिंग साइट से कुछ किलोमीटर की ऊंचाई पर संपर्क टूटने के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और चंद्रयान-2 का 47 दिन का सफर बेकार हो गया था। ऐसे में भारत इस बार चंद्रयान-3 मिशन पर चंद्रयान-2 के फॉलोअप मिशन के रूप में काम कर रहा है।
चंद्रयान-3 मिशन में “चंद्रमा का विज्ञान” की थीम को ध्यान में रखते हुए, चंद्रयान में लैंडर और रोवर की मदद से वैज्ञानिक उपकरण चंद्र पर्यावरण और थर्मो-फिजियो गुणों सहित चंद्रमा के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के सक्षम होंगे। लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने में एंड-टू-एंड क्षमता प्रदान करेंगे। साथ ही, चंद्रयान-3 मिशन में शामिल एक अन्य प्रायोगिक उपकरण पृथ्वी के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए जोड़ा गया है। इस प्रकार यह “चंद्रमा से विज्ञान” के एक साथ विषय पर काम करेंगे।
क्या है चंद्रयान-3 मिशन ?
इसे SDSC, श्रीहरिकोटा से GSLV MkIII द्वारा लॉन्च किया जाएगा। यह पहले के मुकाबले ज्यादा हैवी लॉन्च व्हीकल है, जिसे ‘बाहुबली’ भी कहा जाता है। यह देश का सबसे हैवी लॉन्च व्हीकल है। इसे भेजने का मकसद पृथ्वी से इतर किसी दूसरी जगह पर अपने यान की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराने की क्षमता हासिल करना है, जो अब तक महज तीन देशों के ही पास है। इससे भारत चंद्रमा के वातावरण में सुरक्षित लैंडिंग और रोविंग की एंड-टू-एंड कैपेबिलिटी का प्रदर्शन करेगा। यह मिशन अंतरिक्ष में पहली बार अपने दम पर किसी भारतीय इंसान को भेजने के मिशन की क्षमता को मजबूत करेगा। भारत ने साल 2024 में गगनयान मिशन के जरिए पहली बार अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने की तैयारी की है।
दुनिया के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है चंद्रयान-3 मिशन
दरअसल, चंद्रमा हमारा निकटतम खगोलीय नेबर है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से दुनियाभर के कुछ देशों द्वारा पूरे किए गए कई अंतरिक्ष मिशनों का यही एक मुख्य लक्ष्य रहा है। इस दिशा में रूस के चंद्रमा तक पहुंचने, या अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री द्वारा चंद्रमा की सतह पर पैर रखने के बाद से चंद्रमा की खोज के लिए एक लंबा सफर तय किया गया है। और अब हम एक नए युग की शुरुआत की ओर बढ़ रहे हैं, जहां मानव अगले दशक के भीतर चंद्रमा पर एक कॉलोनी बनाना शुरू कर सकता है। इसी दिशा में आने वाले वक्त में भारत का चंद्रयान-3 मिशन पूरी दुनिया के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है।
GSLV MkIII की मिशन में क्या रहेगी भूमिका ?
GSLV MkIII प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की 100 किमी की कक्षा तक लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन को ले जाने का काम करेगा। प्रोपल्शन मॉड्यूल में चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी के spectral और polarimetric मापों का अध्ययन करने के लिए हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (शेप) पेलोड की स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री है।
क्या है लैंडर और रोवर पेलोड ?
लैंडर पेलोड: यह थर्मल कंडक्टिविटी यानी तापीय चालकता और तापमान को मापने के लिए चंद्रमा के सरफेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE); लैंडिंग साइट के आसपास भूकंप को मापने के लिए चंद्र भूकंपीय गतिविधि (ILSA); प्लाज्मा घनत्व और इसकी विविधताओं का अनुमान लगाने के लिए लैंगमुइर जांच (एलपी) से लैस है। इसे लेजर रिट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे को चंद्रमा लेजर रेंजिंग अध्ययनों के लिए तैयार किया गया है।
रोवर पेलोड: यह लैंडिंग साइट के आसपास मौलिक संरचना के बारे में जानने के लिए अल्फा कण एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) और लेजर प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस) प्रणाली से लैस किया गया है।
चांद की सतह की स्टडी का मिलेगा मौका
इस प्रकार चंद्रयान-3 मिशन अपने साथ कई वैज्ञानिक उपकरण लेकर जाएगा, जो लैंडिंग साइट के आसपास के एरिया में चंद्रमा की चट्टानी सतह की परत, चंद्रमा के भूकंप और चंद्र सतह प्लाज्मा और मौलिक संरचना की थर्मल-फिजिकल प्रॉपर्टीज की स्टडी में मदद करेंगे।
मिशन की सफलता के साथ इतिहास रचेगा भारत
भारत चंद्रयान को चंद्रमा पर उतारने में सफल रहा तो वह इतिहास रच देगा। ऐसा करने पर वह दुनिया का चौथा देश बन जाएगा, जिसने चंद्रयान को सफलतापूर्वक चांद पर लैंड किया है। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ने ऐसा किया है। भारत ने इससे पहले वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 के जरिए यह कोशिश की थी, लेकिन तब चंद्रयान का लैंडर विक्रम लैंडिंग साइट से कुछ किलोमीटर की ऊंचाई पर संपर्क टूटने के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और चंद्रयान-2 का 47 दिन का सफर बेकार हो गया था। अब इस मिशन में सफलता हासिल करने के लिए भारत चंद्रयान-3 मिशन पर काम कर रहा है। यही कारण है कि चंद्रयान-3 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का सबसे अहम और महत्वाकांक्षी मिशन बन गया है।