दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में पारंपरिक/हर्बल उत्पादों की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए प्रयोगशाला क्षमता को उन्नत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया
डब्ल्यूएचओ दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र (डब्ल्यूएचओ-एसईएआरओ) के सहयोग से आयुष मंत्रालय के भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी फार्माकोपिया आयोग (पीसीआईएमएंडएच) ने दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में पारंपरिक/हर्बल उत्पादों की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए प्रयोगशाला क्षमता को उन्नत करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के क्षेत्रीय सलाहकार-पारंपरिक चिकित्सा डॉ. किम सुंगचोल, पीसीआईएमएंडएच के निदेशक डॉ. रमन मोहन सिंह और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में आयुष मंत्रालय के विशेष सचिव श्री प्रमोद कुमार पाठक ने तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन किया। ऐसा कार्यक्रम देश में पहली बार आयोजित किया जा रहा है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में 9 देशों (भूटान, इंडोनेशिया, भारत, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल, मालदीव, तिमोर लेस्ते और बांग्लादेश) के कुल 23 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। प्रशिक्षण का उद्देश्य पारंपरिक/हर्बल उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्रयोगशाला आधारित तकनीकों और विधियों के लिए कौशल प्रदान करना है।
इस अवसर पर, आयुष मंत्रालय के विशेष सचिव श्री प्रमोद कुमार पाठक ने कहा, “विकासशील देशों के अनुसंधान और सूचना प्रणाली केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, इस उद्योग के 2022 में 23.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। बढ़ते बाजार के साथ, मिलावट के कारण हर्बल सामग्री की गुणवत्ता के मुद्दे भी तेजी से चिंताजनक होते जा रहे हैं। लैब-आधारित गुणवत्ता नियंत्रण में एकरूपता अक्सर विभिन्न भौतिक, रासायनिक और भौगोलिक पहलुओं द्वारा परिवर्तित जड़ी-बूटियों की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने में सक्षम होगी।”
डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के क्षेत्रीय सलाहकार-पारंपरिक चिकित्सा डॉ. किम सुंगचोल ने कहा, “डब्ल्यूएचओ-एसईएआरओ ने अन्य देशों के लिए क्षेत्रीय कार्यशालाओं और प्रशिक्षण का सफलतापूर्वक आयोजन किया है। इन क्षेत्रीय कार्यशालाओं के दौरान सदस्य देशों द्वारा की गई प्रमुख सिफारिशों में से एक नियामक क्षमता सुनिश्चित करना था और यही कारण है कि हम आयुष मंत्रालय के पीसीआईएमएंडएच के सहयोग से इस पहले प्रशिक्षण सत्र का आयोजन कर रहे हैं।
गुणवत्ता नियंत्रण के उपायों में कच्ची हर्बल सामग्री, अच्छी प्रथाओं (कृषि, खेती, संग्रह, भंडारण, निर्माण, प्रयोगशाला और नैदानिक, आदि सहित) के मानक शामिल हैं। विनिर्माण, आयात, निर्यात और विपणन के लिए विशिष्ट और समान लाइसेंसिंग योजनाओं को लागू किया जाना चाहिए जो सुरक्षा और प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
बढ़ते बाजार से हर्बल दवाओं की उचित गुणवत्ता, प्रभावकारिता और प्रभावशीलता को बनाए रखने की चुनौती उत्पन्न हो रही है। पारंपरिक/हर्बल उत्पादों की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए प्रयोगशाला क्षमता के नेटवर्क के माध्यम से इसे मजबूत करने की आवश्यकता है। यह अनूठा कार्यक्रम पारंपरिक/हर्बल उत्पादों की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए मैक्रोस्कोपी, माइक्रोस्कोपी इन फार्माकोग्नॉसी, फाइटोकेमिस्ट्री, माइक्रोबायोलॉजी, अन्य उन्नत उपकरण/प्रौद्योगिकियों यानी हाई-परफॉर्मेंस थिन लेयर क्रोमैटोग्राफी (एचपीटीएलसी), गैस क्रोमैटोग्राफी आदि जैसी प्रयोगशाला विधियों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करेगा।