जिस नहर को बचपन से ही बनते देखा। रोजाना एक से दो घंटे का समय जिस नहर के पानी के बीच खेल-खेल में गुजरता था, उसकी धार, लहर और गहराई को वह बखूबी जानती थी। वही नहर जब एकएक कर लोगों को लील रही थी तो 10 साल की शिवरानी लोनिया उसमें कूद पड़ी। पानी के बहाव से लड़-झगड़कर डूबते लोगों को वापस छीन लाई। मलाल केवल इस बात का है कि यदि थोड़ा और वक्त मिल जाता तो औरों की जिंदगी बचा लेते।मंगलवार सुबह का वक्त था आसमान में बादल छाए हुए थे बीच-बीच में हल्की बूंदाबांदी भी हो रही थी। शिवरानी ब्रश करके घर के बाहर कुर्सी में बैठी हुई थी। एक यात्री बस भरी हुई उसके आंखों के सामने से गुजरी। वह बस को देखती रही जैसे उसे कोई अंदेशा हो रहा हो। घर से करीब तीन सौ मीटर दूर सामने से आ रहे वाहन को साइड देने के दौरान पिछला पहिया फिसल गया और बस नहर में सामाने लगी। देखते ही शिवारानी दौड़कर पहुंची और बीच नहर में कूद गई। पानी का तेज बहाव था। लड़कियां, महिला और पुरुष मिलाकर 8 लोग पानी में बह रहे थे। 30 सेकंड से लेकर 1 मिनट के भीतर वह एक-एक कर डूबते लोगों का हाथ पकड़कर किनारे लगाने लगी। करीब आठ से दस मिनट के भीतर इन लोगों को नहर के किनारे खड़ा कर दिया।
बनना चाहती है पुलिस अधिकारी: शिवरानी ने कहा की वह पढ़ लिखकर पुलिस अधिकारी बनना चाहती है। गांव में आम लोगों की परेशानी, जरूरतें और मदद करने का जज्बा ही उसे इस सपने को पूरा करने की प्रेरणा देता रहता है।
पहले भी कर चुकी है मदद: नहर के किनारे शिवरानी का घर बना है वह आए दिन नहर में गिरने वालों की मदद करती रहती हैं। वह बताती हैं कि करीब तीन महीने पहले दोपहर एक बजे की घटना है। एक 23 वर्षीय युवक अपनी साइकिल से फैक्ट्री में ड्यूटी करने जा रहा था। साइकिल में ब्रेक की दिक्कत थी जिससे वह साइकिल समेत नहर में गिर गया। इस पूरे घटना को शिवरानी देख रही थी जैसे ही उसने साइकिल गिरते देखा वह दौड़ कर छलांग लगा दी जिससे उस युवक की जान बच गई।
बेजुबानों के बचाती रही है जान: मानवता के लिए शिवरानी एक मिसाल हैं। नहर के दोनों हिस्सों में कई गांव बसे हुए हैं। इस रास्ते से मवेशियों का आना जाना आए दिन बना रहता है। वे बताती हैं कि कई बार ऐसा हुआ है कि गाय, बकरी सहित अन्य पालतू पशु नहर में पानी पीने के लिए या फिर किसी अन्य कारण से गिर जाते थे। मैंने कईयों को डूबने से बचाया है।
नहीं भूलती है घटना: शिवरानी कहती हैं कि एक पल के लिए हादसा नहीं भूलता। मलाल रह गया कि थोड़ा वक्त मिलता तो और लोगों की भी जान बचा सकती थी