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अगले दस वर्षों मे लौह और इस्पात क्षेत्र का सतत विकास करने के लिए एक व्यापक मध्यम अवधि का अनुसंधान एवं विकास रोडमैप और कार्य योजना तैयार करने के लिए विचार-विमर्श बैठक का आयोजन किया गया

अगले दस वर्षों मे लौह और इस्पात क्षेत्र का सतत विकास करने के लिए एक व्यापक मध्यम अवधि का अनुसंधान एवं विकास रोडमैप और कार्य योजना तैयार करने के लिए विचार-विमर्श बैठक का आयोजन किया गया
  • PublishedMay 12, 2023

इस्पात मंत्रालय द्वारा 11 मई 2023 को इस्पात सचिव श्री एन.एन. सिन्हा की अध्यक्षता में अगले दस वर्षों मे लौह और इस्पात क्षेत्र का सतत विकास करने के लिए एक व्यापक मध्यम अवधि का अनुसंधान एवं विकास रोडमैप और कार्य योजना तैयार करने के लिए एक विचार-विमर्श बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में इस्पात उद्योग, शिक्षाविदों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं, डिजाइन एवं इंजीनियरिंग कंपनियों और अन्य संबंधित मंत्रालयों/विभागों जैसे डीएसटी, डीएसआईआर, डीआरडीओ आदि के हितधारकों ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। विचार-विमर्श बैठक का संचालन डॉ. इंद्रनील चट्टोराज, राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (सीएसआईआर-एनएमएल) जमशेदपुर के पूर्व निदेशक और श्रीमती रुचिका चौधरी गोविल, इस्पात मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव ने किया।

यह बैठक अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकताओं पर चर्चा के साथ शुरू हुई, जिसे देश के इस्पात क्षेत्र के दीर्घकालिक सतत विकास करने के लिए एक आम मंच के रूप में तैयार किया जा सकता है। इसमें अनुसंधान के लिए पहचाने गए प्रमुख क्षेत्रों में लौह अयस्क और जमाव का लाभ, कोयला का परिष्करण, कार्बन कैप्चर और उपयोग, स्टील उद्योग के अपशिष्टों जैसे स्टील स्लैग का उपयोग, डीकार्बोनाइजेशन प्रौद्योगिकी, लोहा एवं इस्पात बनाने के कुछ क्षेत्रों में कोक/कोयले को प्रतिस्थापित करने के लिए बायो-चार का उपयोग और माध्यमिक इस्पात क्षेत्र के लिए विशिष्ट चुनौतियों और मुद्दों का समाधान करने के लिए अनुसंधान एवं विकास शामिल हैं। लौह एवं इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समन्वित और सहयोगी अनुसंधान करने के लिए उद्योग, अनुसंधान प्रयोगशालाओं और अकादमिक इंटरफेस को मजबूत करने के उपायों और साधनों की पहचान करने पर चर्चा की गई। इसके बाद, यह सुनिश्चित करने के उपायों और साधनों पर चर्चा की गई कि अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से उत्पन्न आईपी भारत में पूरे इस्पात क्षेत्र के लिए उपलब्ध हैं और अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से उत्पन्न आईपी को वास्तविक प्रक्रियाओं के विकास में कैसे अपनाया जा सकता है और प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक मशीनरी और संयंत्रों के विकास और उत्पादन में परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार से, अनुसंधान एवं विकास कार्यों को शुरू करने के लिए आवश्यक अनुसंधान एवं विकास निधियों और संस्थागत विकास की आवश्यकता और स्रोतों पर भी चर्चा की गई।

विभिन्न एकीकृत इस्पात संयंत्र और इस्पात सीपीएसई पूरे क्षेत्र द्वारा सहयोगात्मक उपयोग के लिए अपनी सुविधाओं को साझा करने के लिए सामने आए। पूरी चर्चा का विषय राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को तेजी से संबोधित करने के लिए सर्वोत्तम संभव उपयोग के लिए दुर्लभ राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संसाधनों को लागू करना रहा और साथ ही लौह एवं इस्पात का निर्माण करने के विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी को प्राप्त करना रहा।

हितधारकों को उनके द्वारा मूल्यवान जानकारी प्रदान करने के लिए धन्यवाद देते हुए, जिन्होंने इस मामले पर आगे बातचीत करने के लिए एक जमीन तैयार किया गया, इस्पात सचिव ने कहा कि भविष्य में प्राथमिकता के आधार पर किए जाने वाले रोडमैप/आर एंड डी कार्यक्रमों के लिए उनसे विस्तृत जानकारी प्राप्त की जाएगी। पहचान किए गए अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों और उनकी लागत के आधार पर, इस्पात मंत्रालय वित्तपोषण के स्त्रोतों के साथ-साथ सभी पहलों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र की पहचान/सुविधा प्रदान करेगा।