देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था 2030 तक राष्ट्रीय आय में लगभग पांचवें हिस्से के बराबर देगी योगदान
भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था 2029-30 तक राष्ट्रीय आय में लगभग पांचवें हिस्से के बराबर योगदान देगी। इसका मतलब है कि छह साल से भी कम समय में, देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था का हिस्सा कृषि या विनिर्माण से ज्यादा हो जाएगा। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था इसकी आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले के रूप में उभरी है, जिसकी 2022-23 में जीडीपी (31.64 लाख करोड़ रुपये या 402 बिलियन अमेरिकी डॉलर) में 11.74% हिस्सेदारी थी। 14.67 मिलियन श्रमिकों (कार्यबल का 2.55%) को रोजगार देने वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था बाकी अर्थव्यवस्था की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक उत्पादक है। यह जानकारी इलेक्ट्रानिक्स एवं आईटी मंत्रालय ने दी है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डिजिटल देश
वहीं, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था रिपोर्ट 2024 के अनुसार, अर्थव्यवस्था-वार डिजिटलीकरण के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डिजिटल देश है और व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के डिजिटलीकरण के स्तर में G20 देशों में 12वें स्थान पर है। मंत्रालय के मुताबिक सबसे अधिक वृद्धि डिजिटल इंटरमीडियरीज और प्लेटफार्मों के विकास से आने की संभावना है, इसके बाद बाकी अर्थव्यवस्था का ज्यादा डिजिटल प्रसार और डिजिटलीकरण होगा। इससे अंततः डिजिटल अर्थव्यवस्था में डिजिटल रूप से सक्षम आईसीटी उद्योगों की हिस्सेदारी कम हो जाएगी।
डिजिटल प्लेटफॉर्म और इंटरमीडियरीज ने जीवीए में 2% योगदान दिया
देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था की 2022-23 में जीडीपी (31.64 लाख करोड़ रुपये या 402 बिलियन अमेरिकी डॉलर) में 11.74% हिस्सेदारी थी। उल्लेखनीय है, 14.67 मिलियन श्रमिकों (कार्यबल का 2.55%) को रोजगार देने वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था बाकी अर्थव्यवस्था की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक उत्पादक है। आईसीटी सेवाओं और मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक घटकों, कंप्यूटर और संचार उपकरणों के विनिर्माण जैसे डिजिटल रूप से सक्षम उद्योगों ने जीवीए (सकल मूल्य वर्धित) में 7.83% का योगदान दिया, जबकि डिजिटल प्लेटफॉर्म और इंटरमीडियरीज ने जीवीए में 2% योगदान दिया है।
बीएफएसआई, खुदरा और शिक्षा जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में डिजिटलीकरण ने जीवीए में 2 प्रतिशत की वृद्धि की
इसके अलावा, बीएफएसआई, खुदरा और शिक्षा जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में डिजिटलीकरण ने जीवीए में 2% की वृद्धि की, जो डिजिटल परिवर्तन के व्यापक प्रभाव को दर्शाता है। अनुमानों से संकेत मिलते हैं कि 2029-30 तक डिजिटल अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी जीवीए के 20% तक बढ़ जाएगी, जो कृषि और विनिर्माण से आगे निकल जाएगी। विकास के प्रमुख संचालकों में एआई, क्लाउड सेवाओं को तेजी से अपनाना और वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) का उदय शामिल है, जिसमें भारत दुनिया के 55% जीसीसी की मेजबानी करता है। जीसीसी बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा अपने मूल संगठनों को विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करने के लिए स्थापित अपतटीय केंद्र हैं, जिनमें आरएंडडी, आईटी सहायता और व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन शामिल हैं।
पारम्परिक क्षेत्रों का डिजिटलीकरण
दरअसल प्राथमिक सर्वेक्षण और हितधारक चर्चाओं से इस बारे में रोचक तथ्य सामने आए कि विभिन्न क्षेत्र किस तरह डिजिटल हो रहे हैं और कंपनियों द्वारा उत्पन्न राजस्व में उनका क्या योगदान है। व्यवसायों के सभी पहलू समान रूप से डिजिटल नहीं हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, थोक बिक्री की तुलना में खुदरा बिक्री कहीं अधिक डिजिटल हो रही है। कंपनियां ग्राहक अधिग्रहण और व्यवसाय विकास के लिए डिजिटल तरीकों में भी निवेश कर रही हैं। चैटबॉट और एआई एप्लीकेशन काफी आम हैं।
बीएफएसआई क्षेत्र में, बैंकिंग भुगतान लेनदेन का 95% से अधिक डिजिटल है, लेकिन ऋण और निवेश जैसी राजस्व-उत्पादक गतिविधियां काफी हद तक ऑफलाइन रहती हैं, जबकि वित्तीय सेवाएं कुल मिलाकर कम डिजिटल होती हैं। रिटेल ओमनी-चैनल मॉडल की ओर बढ़ रहा है, जिसमें ई-रिटेलर्स फिजिकल स्टोर जोड़ रहे हैं, जबकि एआई चैटबॉट और डिजिटल इन्वेंट्री टूल दक्षता बढ़ाते हैं।
शिक्षा ने ऑफलाइन, ऑनलाइन और हाइब्रिड मॉडल अपनाना शुरू कर दिया है, जिसमें अधिकांश संस्थान हाइब्रिड दृष्टिकोण का समर्थन कर रहे हैं। आतिथ्य (हॉस्पिटैलिटी) और लॉजिस्टिक्स एआई, मेटावर्स और डिजिटल टूल को अपना रहे हैं, जिसमें बड़ी कंपनियां पूरी तरह से संचालन को डिजिटल बना रही हैं, जबकि छोटी कंपनियां पीछे हैं।
ऐसा अनुमान है कि 2030 तक भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था देश की कुल अर्थव्यवस्था में लगभग पांचवें हिस्से के बराबर योगदान देगी, जो पारंपरिक क्षेत्रों की वृद्धि से कहीं ज्यादा होगी। गौरतलब हो कि पिछले एक दशक में, डिजिटल-सक्षम उद्योगों की वृद्धि दर 17.3% रही है, जो पूरी अर्थव्यवस्था की 11.8% वृद्धि दर से काफी ज़्यादा है।