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स्वच्छ स्वर्णिम सासवड: साल भर में तय किया 15वें स्थान से शीर्ष पायदान तक का सफर

स्वच्छ स्वर्णिम सासवड: साल भर में तय किया 15वें स्थान से शीर्ष पायदान तक का सफर
  • PublishedFebruary 16, 2024

‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत शहरों के बीच छिड़ी स्वच्छता की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा लगातार कड़ी होती जा रही है। आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के अंतर्गत शहरों का तेजी से कायाकल्प देखने को मिल रहा है। आमजन में व्यवहार परिवर्तन आने से मिशन जन आंदोलन में तब्दील हो चुका है, जिसके चलते स्वच्छ शहरों की सूची में हर साल नए नाम जुड़ रहे हैं। पिछले साल तक 15वें स्थान पर रहे सासवड शहर ने भी स्वच्छता की दिशा में कुछ इसी तरह अद्भुत प्रयासों के दम पर अपनी स्वच्छता रैंकिंग में तेजी से सुधार किया।

इतना ही नहीं, इस शहर ने ‘1 लाख से कम आबादी’ वाले शहरों की श्रेणी में ‘सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग’ हासिल कर ली। महाराष्ट्र के सासवड शहर को इस विशेष श्रेणी में ‘ऑल इंडिया क्लीन सिटी’ की ‘नंबर 1 रैंकिंग’ मिली है, जिसे हाल ही में दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम में आयोजित ‘स्वच्छ सर्वेक्षण पुरस्कार 2023’ समारोह में भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु के हाथों पुरस्कृत और सम्मानित किया गया। इस शहर को ‘गार्बेज-फ्री सिटीज’ (जीएफसी) यानी कचरा मुक्त शहरों की श्रेणी में भी ‘3 स्टार रेटिंग’ प्राप्त हुई है।

सासवड शहर को ‘ओपन डेफिकेशन-फ्री’ (ओडीएफ) यानी खुले में शौच से मुक्त शहर की श्रेणी में ओडीएफ, ओडीएफ+ और ओडीएफ++ से भी आगे बढ़कर वॉटर+ सिटी घोषित किया जा चुका है। इसका अर्थ यह हुआ कि सासवड शहर खुले में शौच की समस्या से मुक्त तो है ही, साथ ही सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों की ऐसी व्यवस्थाएं लागू कर चुका है, जिसके चलते झुग्गी-बस्तियों वाले क्षेत्रों में भी खुले में शौच की समस्याएं खत्म हो चुकी हैं।

वहीं वॉटर+ श्रेणी यह दर्शाती है कि यह शहर शौचालयों की स्वच्छता के साथ ही पानी बचाने की दिशा में भी बेहतरीन काम कर रहा है। अर्थात इस शहर में ‘यूज्ड वॉटर मैनेजमेंट’ (यूडब्ल्यूएम) यानी एक बार इस्तेमाल हो चुके पानी को ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ (एसटीपी) स्थापित कर ट्रीट किया जा रहा है और उसको शौचालयों समेत अन्य स्थानों पर पुन: उपयोग में लाया जा रहा है, ताकि ज्यादा पानी व्यर्थ में न बहाया जाए। इस प्रक्रिया को प्रयुक्त जल प्रबंधन कहा जाता है, जिसके अंतर्गत पानी के दो या तीन स्तरीय उपयोग की व्यवस्था की जाती है, ताकि ताजे पानी का कम से कम प्रयोग करते हुए जल संरक्षण की दिशा में योगदान देकर उसे बचाया जा सके।