केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज श्रीनगर में संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित वितस्ता महोत्सव को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज श्रीनगर में संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित वितस्ता महोत्सव को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। इस अवसर पर जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा, केन्द्रीय मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी, केन्द्रीय गृह सचिव और सचिव, संस्कृति मंत्रालय सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
अपने संबोधन में श्री अमित शाह ने कहा कि यही वितस्ता है जो हज़ारों सालों से कश्मीर में अनेक अनुसंधानों की साक्षी रही है और इसे अनेक संस्कृतियों का मिलनस्थल बनने का सौभाग्य भी प्राप्त है। इसी झेलम ने आदिशंकर को भी देखा है। उन्होंने कहा कि हर क्षेत्र के विद्वानों ने इसी भूमि से निकलकर ना केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में अपनी कलाओं का लोहा मनवाया है और इन सबका समन्वय आज की कश्मीर की संस्कृति मे देखने को मिंलता है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि इस झेलम ने कठिन समय देखे हैं, वितस्ता की धारा ने रक्त भी देखा है, धर्मान्ध लोगों के हमले देखे हैं, अनेक राज परिवर्तन देखे हैं और यही झेलम आतकवाद की भीषण विभीषिका की साक्षी भी रही है। उन्होंने कहा कि इन सबको अपने में समाहित करके हमेशा बच्चो को स्नेह, प्यार और उत्साह देने का काम वितस्ता ने किया है। श्री शाह ने कहा कि जो लोग झेलम को नदी मानते हैं, उन्हें मानव संस्कृति और उसकी ऊंचाई की पहचान नहीं है। उन्होंने कहा कि झेलम मानव सभ्यता की श्रेष्ठ साक्षी रही है और यहाँ आयोजित ये वितस्ता महोत्सव पूरे विश्व को कश्मीर का दर्शन कराने वाला एक महोत्सव है। वितस्ता महोत्सव का उद्देश्य पूरे देश को कश्मीर की महान सांस्कृतिक विरासत, विविधता और विशिष्टता से परिचित कराना है। यह महोत्सव वितस्ता (झेलम) नदी से जुड़ी लोक मान्यताओं पर केंद्रित है, जिसे वैदिक काल से ही बहुत पवित्र माना जाता है। इस नदी का उल्लेख नीलमत पुराण, वितस्ता महामाया, हरचरिता चिंतामणि, राजतरंगिणी जैसे कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है और ऐसा माना जाता है कि इस पूजनीय नदी की निर्मल धाराएं, मानव स्वभाव के सभी अपकृत्यों का नाश कर देती हैं।
श्री अमित शाह ने कहा कि आदिशंकर ने जिस भूमि को ज्ञान की भूमि कहा, मुगल शासकों ने पृथ्वी का स्वर्ग कहा और सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के विचार मंथन को आगे बढ़ाने वाली उचित भूमि कहा, वो यही कश्मीर है। उन्होंने कहा कि संस्कृति एक साल में या एक कला और विधा से नहीं बनती, संस्कृति मानव जीवन के अनेक प्रकार के पहलुओं के समन्वय से बनती और जहां संस्कृति की धारा अविरल बहती हो, ऐसे बहुत कम देशों में से एक हमारा भारत है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। देश के हर हिस्से में इतनी पुरातन संस्कृति कि अविरल धारा बनकर भारतीय संस्कृति की गंगा बनती है। उन्होंने कहा कि एक ज़माने में हम पर शासन करने वाले अंग्रेज़ों को हमारी विविधता हमारी दुर्बलता लगती थी, लेकिन जब शासक रचनात्मक दृष्टिकोण से देखता है तो विविधता में एकता हमारी विशेषता और सबसे बड़ी शक्ति है। उन्होंने कहा कि सबके साथ जीने का हम सबका संस्कार ही भारत की विशेषता है और ये वितस्ता महोत्सव कश्मीर की इस विशेषता को पूरे भारत और विश्व में पहुंचाने वाला राजदूत है। उन्होंने कहा कि वितस्ता महोत्सव के माध्यम से ही कश्मीर सबको समाहित करने वाली और एक बहुत बड़े मन वाली विचारधारा और संस्कृति है। यहीं संगीत और ज्ञान ने ऊंचाइयों को छुआ इसीलिए आदिशंकर ने इसे शारदा क्षेत्र कहा औऱ यहां शारदा पीठ की स्थापना की।